शराब का
नशा अभी उतरा भी नहीं ,
के वोह हमसे नज़र मिलाने लगी
ये खवाब है या हकीकत .. मुझे तो
मोहब्बत होने लगी
पीते पिलाते कब होश फना हुए खबर नहीं
आँख खुली तो फिर उनसे नज़र मिली
गिरता हूँ .. खुद से संभालता हूँ .. सचमुच उससे
मोहब्बत करता हूँ
डरती भी थी वो और तड़पती भी थी वो
कभी आखें चुराती और कभी चुपके से आह भरती थी वो
हसने लगी थी वो . सोचने भी .. आखिर उसको भी मोहब्बत होने
लगी
मगर जमाने को यह इश्क मंजूर ना था
ग़म-ए-जुदाई अब दूर ना था
दूर तक जो साथ थी .. वही निगाह थी ... पर कुछ भीगी सी थी
आज भी पीता हूँ मैं मगर प्यासा ही रहता हूँ
आज भी पीता हूँ मैं मगर प्यासा ही रहता हूँ
बुझा दे जो इस अग्न को .. ऐसी निगाह नज़र आती नहीं
बहलाता हूँ कितने तरीको से इसे .. पर कमबख्त दिल से मोहब्बत कम नहीं होती
बहलाता हूँ कितने तरीको से इसे .. पर कमबख्त दिल से मोहब्बत कम नहीं होती